Special report on School Education: स्कूली शिक्षा में दर्जनों गैर सरकारी संगठनों की अनावश्यक दखल, आखिर स्कूली बच्चों पर और कितने प्रयोग किए जाएंगे? 'हिमवंत' पर पढ़ें यह खास रिपोर्ट
Sushil Dobhal, Editor- 'Himwant' |
आखिर स्कूली बच्चों पर और कितने प्रयोग किए जायेंगे? इन बच्चों पर रहम करो और इन्हें विद्यालयों में इनके विषयाध्यापकों से ही पढ़ने दो। ऐसे संगठनों के साथ Artificial intelligence भी शिक्षकों का स्थान कभी नही ले सकती। कतिपय स्वार्थी संगठन केवल अपने मुनाफे और ख्याति के चक्कर में देश के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। यह स्कूली शिक्षण में सहयोगी कम और बाधक अधिक बन रहे हैं।
शिक्षा में गैर सरकारी संगठनों की महत्वपूर्ण भूमिका गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को बढ़ावा देना है। गैर सरकारी संगठन शिक्षकों को प्रशिक्षण प्रदान करके, शिक्षण सामग्री विकसित करके और बुनियादी ढांचे में सुधार करके स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाने की दिशा में काम करते हैं। वे समावेशी शिक्षा को बढ़ावा देने और यह सुनिश्चित करने की दिशा में भी काम करते हैं कि हर बच्चे को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिले। किंतु आज यह विचारणीय प्रश्न बन गया है कि क्या यह संगठन वास्तव में अपना दायित्व सही ढंग से निभा पा रहे हैं और क्या उनके प्रयासों के वास्तव में बेहतर परिणाम सामने आ रहे हैं?
Covid 19 के रूप में महामारी की आगमन के साथ ही हमने स्कूली बच्चों तक शिक्षण के लिए पहुंच बनाने की दिशा में ICT के साधनों के साथ जो तकनीक अपनाई वह एक सीमा तक उपयोगी साबित हुई। किंतु इन दिनों कई गैर सरकारी संगठन स्कूली बच्चों के शिक्षण में सहयोग के नाम पर केवल आंकड़े बाजी करने में लगे हैं। तमाम तरह से उच्च अधिकारियों को भरोसे में लेकर कार्य की अनुमति तो ले रहे हैं लेकिन धरातल पर कार्य करने के बजाय केवल इंटरनेट और तरह तरह के मोबाइल एप्लीकेशन के माध्यम से स्कूलों और विद्यार्थियों के आंकड़े जुटाकर खानापूर्ति कर रहे हैं। स्कूलों में एक साथ दर्जनों संगठनों की संलिप्तता से जहां अनेक व्यावहारिक समस्याएं पैदा हो जाती है वहीं विद्यार्थियों का पाठ्यक्रम और गृह कार्य भी समय पर पूरा नहीं हो पाता। ऐसे अनेक तथाकथित गैर सरकारी संगठनो द्वारा उचित कार्य योजना और मॉनिटरिंग के अभाव में जहां लक्ष्य प्राप्त नहीं हो पा रहे हैं वहीं इनके अनावश्यक दखल से शिक्षकों के कार्य में व्यवधान पैदा हो रहा है।
इसका एक उदाहरण आपके साथ साझा कर रहा हूं। ऐसे ही एक संगठन को उत्तराखंड विद्यालयी शिक्षा विभाग द्वारा माध्यमिक विद्यार्थियों को अंग्रेजी में वार्तालाप सिखाने का प्रोजेक्ट सौंपा गया। परिणामस्वरूप इस संगठन के लोग आए दिन विद्यालयों के प्रधानाचार्य और शिक्षको को ऑनलाइन मीटिंग और वर्कशॉप के नाम पर व्यस्त करने लगे। विद्यालयों से छात्र-छात्राओं के ऑनलाइन पंजीकरण के नाम पर सारे आंकड़े मंगा लिए गए। इस प्रकार कुछ समय बाद विद्यालय को सभी छात्र-छात्राओं के लिए एक मोबाइल एप के लिए यूजर आईडी और पासवर्ड भेज दिए गए।
आश्चर्यजनक बात यह है कि मोबाइल ऐप पर पश्चिमी देशों के विद्यार्थियों के लिए तैयार किए गए वीडियो अपलोड किए गए हैं, जिनका उच्चारण ग्रामीण परिवेश के विद्यार्थी तो क्या शिक्षकों के लिए भी व्यावहारिक नहीं है। जहां एक और राष्ट्रीय शिक्षा नीति में मातृभाषा में शिक्षण को प्राथमिकता देने की बात कही जा रही है वहीं पाश्चात्य देशों में तैयार किए गए वीडियो से उत्तराखंड के ग्रामीण परिवेश के बच्चों के अंग्रेजी वार्तालाप सीख पाने की कितनी गुंजाइश हो सकती है आप बेहतर समझ सकते हैं, लेकिन मोबाइल एप पर छात्र द्वारा लॉगिन करते ही आंकड़ों का खेल शुरू हो जाता है और तथाकथित शिक्षा के सहयोगी संगठन इस तरह अपनी उपलब्धि गिना सकते हैं। ऐसे संगठनों को अवश्य विचार करना चाहिए की ग्रामीण परिवेश के बड़ी संख्या में विद्यार्थी आज भी इंटरनेट और मोबाइल की पहुंच से बहुत दूर हैं।
Special report on School Education: स्कूली शिक्षा में दर्जनों गैर सरकारी संगठनों की अनावश्यक दखल, आखिर स्कूली बच्चों पर और कितने प्रयोग किए जाएंगे? 'हिमवंत' पर पढ़ें यह खास रिपोर्ट https://www.himwantlive.com/2023/09/special-report-on-school-education.html
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा होता अगर शिक्षक को काम करने देते उसे बे व झा के कामो ना लगा ते
ReplyDeleteबिल्कुल सही
ReplyDeleteगैर सरकारी संगठन तो बच्चों का नुकसान ही कर रहे हैं, यह कार्य केवल सरकारी स्कूलों के बच्चों के साथ किया जा रहा है।
ReplyDeleteइसके अलावा कई सरकारी विभाग भी अपना कार्य सरकारी विद्यालयों को थोप रहे हैं। सरकारी विद्यालयों में पढ़ाई को छोड़कर सभी अन्य कामों पर ज्यादा ध्यान देना पड़ता है। वरना जबाब तलब हो जाते हैं।
जी, सही कहा। गैर सरकारी संगठन अपना लक्ष्य केवल सरकारी विद्यालयों को ही बना रहे हैं। ऐसा लगता है मानो यह सब सोची समझी साजिश के तहत हो रहा है।
Deleteबिना बुलाए मेहमान की तरह हैं ये सब। जो उस परिवार के ऊपर अपनी राय थोपने की कोशिश करते हैं। सरकारी विद्यालयो को अपनी साख बढ़ाने के लिए मात्र साधन के रूप में प्रयुक्त करते हैं। साध्य तो इनका शासकीय संरक्षण में गोपनीय रहता है। कुछ चुनिंदा विद्यालयों में ही पहले असंख्य प्रयोगों से प्राप्त परिणाम /फीडबैक की समीक्षा तंत्र द्वारा की जानी चाहिए।
ReplyDeleteसही कहा सर एक नाम खुशी फाउंडेशन भी एड करें
ReplyDeleteJi sure
Deleteयह पूंजीवादी व्यवस्था को लागू करने का तरीका है।यह जबरदस्ती तमाम गैर सरकारी संगठनों को थोपकर लाभ कमाना है। इससे आने वाली गरीव पीढ़ी सिर्फ और सिर्फ मनरेगा के अकुशल मजदूर तैयार होंगे, साथ ही फिरी की राशन लेने को लाइन में लगे होंगे , क्योंकि हमारे इन विद्यालयों में अधिकांश ग्रामीण परिवेश के गरीब बच्चे ही होते हैं।और उन पर इतना तमाम सारे गैर सरकारी संगठनों का दबाव इतना होगा कि वो स्कूल आने में भी कतरायेंगे। विकसित देशों को देखिए उन देशों की राष्ट्रीय आय का अधिकांश व्यय स्वास्थ्य, शिक्षा व प्रशिक्षण पर ही होता है।
ReplyDeleteऐसे ही नवाचार कर करके सरकारी स्कूलों के बच्चों की और शिक्षकों को परेशान किया जा रहा है।
ReplyDeleteउक्त लेख उचित एवं उपयोगी साबित हो. क्योकि ये संस्थाएंँ अध्यापको से ही उचित गतिविधियाँ लेकर अपने विचारों के साथ फिर विद्यालय पर ही लागू करते है. इसके लिये एक बार माननीय न्यायालय के सामने प्रस्तुत किया जाय.
ReplyDeleteसत्य वचन!
ReplyDeleteउत्तराखंड की संस्कृति एवं परिवेश से संबंधित जानकारियां देनी चाहिए।
ReplyDeleteBalsksha kryakram mi to baccho ni apni is smasyaa ko rakha ki school mi rooj k kryakrm si uni class/ study shi dhang si nhi chal pa rhi h...kbhi kbhi to 2-2; 3-3 kryakrm ek din mi karni pad rehi h
ReplyDeleteNELP./swaschata pakhwara/Spoken English or to or anya vibago k kryakrm bhi sarkari school mi chalaye jate h...... Or last mi srif results hi dekha jata...bachaa pass to teacher pass. bachaa fail to fir khna hi kya..