कक्षा 12वीं अर्थशास्त्र के विद्यार्थी मांग का अर्थ, नियम एवं आवश्यक तत्व यहां पढ़ें।
- मांग का अर्थ
- माँग के आवश्यक तत्व
- माँग तालिका
- व्यक्तिगत माँग तालिका
- बाजार माँग तालिका
- व्यक्तिगत तथा बाजार माँग तालिका में अंतर
- माँग वक्र
- माँग को प्रभावित करने वाले तत्व
- माँग में परिवर्तन बनाम माँगी गयी मात्रा मेंं अथवा माँग का विस्तार या संकुचन बनाम माँग में वृद्धि या कमी
- माँग नियम के अपवादअथवा क्या माँग -वक्र ऊपर भी उठ सकता है
- माँग का नियम
माँग का अर्थ किसी वस्तु को प्राप्त करने से है। कितुं अर्थशास्त्र में वस्तु को प्राप्तकरने की इच्छा मात्र को माँग नहीं कहते बल्कि अर्थशास्त्र का संबध एक निश्चित मूल्य वनिश्चित समय से होता है। माँग के, साथ निश्चित मूल्य व निश्चित समय होता है। प्रो. मेयर्स – “किसी वस्तु की माँग उन मात्राओं की तालिका होती है। जिन्हें क्रेतागत एक निश्चित समय पर उसकी सभी संभावित मूल्यों पर खरीदने के लिये तैयार होते है। “
माँग के आवश्यक तत्व
माँग कहलाने के लिए निम्न तत्वों का होना आवश्यक है-
इच्छा –माँग कहलाने के लिये उपभोक्ता की इच्छा का होना आवश्यक है। अन्यइच्छा की उपस्थिति के बावजूद यदि उपभोक्ता उस वस्तु को प्राप्त करने की इच्छानहीं करता तो उसे माँग नहीं कहते।
साधन-माँग कहलाने के लिए मनुष्य की इच्छा के साथ पर्याप्त धन (साधन) काहोना आवश्यक है। एक भिखारी कार खरीदने की इच्छा रख सकता है, परंतुसाधन के अभाव में इस इच्छा को माँग संज्ञा नहीं दी जा सकती।
खर्च करने की तत्परता –माँग कहलाने के लिये मुनष्य के मन में इच्छा व उस इच्छा की पूर्ति के लियेपयार्प् त साधन के साथ-साथ उस धन को उस इच्छा की पूर्ति के लिए व्यय करनेकी तत्परता भी होनी चाहिए। जैसे- यदि एक कजं सू व्यक्ति कार खरीदने की इच्छारखता है और उसके पास उसकी पूर्ति के लिए धन की कमी नहीं है, परतुं वह धनखर्च करने के लिए तैयार नहीं है तो इसे माँग नहीं कहेगें।
निश्चित मूल्य –माँग का एक महत्वपूर्ण तत्व निश्चित कीमत का होना है अर्थात् किसीउपभोक्ता के द्वारा माँगी जाने वाली वस्तु का संबंध यदि कीमत से नहीं किया गयातो उस स्थिति में मागँ का आशय पूर्ण नहीं होगा। उदाहरण के लिए, यदि यह कहाजाय कि 500 किलो गेहँू की माँग है, तो यह अपूर्ण हो। उसे 500 किलो गेहँू कीमाँग 3 रू. प्रति किलो की कीमत पर कहना उचित होगा।
निश्चित समय –प्रभावपूर्ण इच्छा, जिसके लिए मनुष्य के पास धन हो और वह उसे उसकीपूर्ति के लिए व्यय करने इच्छकु भी है और किसी निश्चित मूल्य से संबधित है,लेि कन यदि वह किसी निश्चित समय से संबधित नहीं है तो माँग का अर्थ पूर्ण नहींहोगा।इस प्रकार, किसी वस्तु की माँग, वह मात्रा है जो किसी निश्चित कीमत पर,निश्चित समय के लिए माँगी जाती है।
माँग तालिका
माँग तालिका एक निश्चित समय में विभिन्न कीमतों पर वस्तु की खरीदी जाने वालीमात्रा को बताती है। माँग तालिका दो प्रकार की होती है-
व्यक्तिगत माँग तालिका
बाजार माँग तालिका
व्यक्तिगत माँग तालिका
व्यक्तिगत माँग तालिका में एक व्यक्ति के द्वारा एक निश्चित समय-अवधिमें वस्तु की विभिन्न कीमतों पर वस्तु की खरीदी जाने वाली मात्राओं को दिखायाजाता है।इस माँग तालिका को बायीं ओर वस्तु की कीमत तथा दायीं ओर वस्तु कीमाँगी जाने वाली मात्रा को दिखाया जाता है। तालिका से यह स्पष्ट है-
तालिका
व्यक्तिगत माँग सन्तरे का मूल्य(प्रति इकाई रू. में) सन्तरे की माँग(इकाईयों में)
12345 1000 700 400 200 100
उपर्युक्त तालिका से यह स्पष्ट है कि जैसे- जैसे सन्तरे की कीमत में वृद्धि होती है।वैसे-वैंसे सन्तरे की मागँ में कमी होती है। जब सन्तरे की कीमत प्रति इकाई 1 रू. थी तबसन्तरे की माँग 1000 इकाई की थी, किन्तु सन्तरे के मूल्य में वृद्धि 5 रू. प्रति इकाई हो जानेपर सन्तरे की माँग घटकर 100 इकाइयाँ हो गयी है। इस प्रकार माँग तालिका वस्तु के मूल्यएवं माँगी गयी मात्रा के बीच विपरीत संबंध को स्पष्ट कर रही है।
बाजार माँग तालिका
बाजार माँग तालिका एक निश्चित समय अवधि में वस्तु की विभिन्न कीमतोंपर उनके सभी खरीददारों द्वारा वस्तु की माँगी गयी मात्राओं के कुल यागे कोबताती है। उदाहरणार्थ, मान लीजिए बाजार में वस्तु के A,B एवं C तीन खरीददारहै। अत: वस्तु की विभिन्न कीमतों पर इन लोगों के द्वरा अलग-अलग खरीदी जानेवाली वस्तु की मात्राओं का योग बाजार माँग तालिका होगी। निम्न तालिका से यहस्पष्ट है-
तालिका
उपर्युक्त तालिका के प्रथम खाने जिसमें सन्तरे की कीमत प्रति इकाई रू. को दिखयागया है, तथा अन्तिम खाने में जिसमें बाजार में सन्तरे के विभिन्न खरीददारों द्वारा माँगी गयीकलु मात्रा को दिखाया गया है। ये दोनों खाने मिलकर बाजार माँग तालिका का निर्माणकरते है।
इस प्रकार माँग तालिका से स्पष्ट है कि वस्तु के मूल्य में कमी हाने पर वस्तु की माँगबढ जाती है तथा मूल्य में वृद्धि होने पर वस्तु की माँगी गयी मात्रा में कमी हो जाती है।
व्यक्तिगत तथा बाजार माँग तालिका में अंतर
व्यक्तिगत तथा बाजार माँग तालिका में प्रमुख अंतर निम्नांकित हैं-
बाजार मागँ तालिका व्यक्तिगत मागँ तालिका की अपेक्षा अधिक समतलतथा सतत् होती है। इसका कारण यह है कि, व्यक्ति का व्यवहार असामान्यहो सकता है। जबकि व्यक्तियों के समुदाय का व्यवहार सामान्य हुआ करता है।
व्यक्तिगत माँग तालिका का व्यावहारिक महत्व अधिक नहीं है, जबकिबाजार माँग तालिका का मूल्य नीति, करारोपण नीति तथा अथिर्क नीति केनिधार्र ण पर अत्यधिक प्रभाव पडत़ा है।
व्यक्तिगत माँग तालिका बनाना सरल है। जबकि बाजार माँग तालिकाबनाना एक कठिन कार्य है। इसके दो कारण हैं-
धन की असमानताओं का होना, तथा
व्यक्तियों के दृष्टिकोणों में अतं र पाया जाना।
माँग वक्र
“जब माँग की तालिका को रेखाचित्र के रूप मेंं प्रस्तुुत किया जाता है तबहमेंे माँग वक्र प्राप्त होता है इस प्रकार “माँग तालिका का रेखीय चित्रण ही माँगवक्र कहलाता है।”
माँग वक्र
उपर्युक्त रेखाचित्र में OX आधार पर सन्तरे की इकाइयाँ और OY लम्ब रेखा परसन्तरे की प्रति इकाई कीमत को दिखाया गया है। DD मागँ वक्र है जो कि A,B,C,D एवंE बिन्दुओं को जोडत़े हुए खीचा गया है। DD माँग वक्र में स्थित प्रत्यके बिन्दु विभिन्नकीमतों पर वस्तु की खरीदी जाने वाली मात्रा को बताता है। उदाहरण के लिए, । बिन्दु परसन्तरे की प्रति इकाई कीमत 5 रू. होने पर उपभोक्ता सन्तरे की 1 इकाइयाँ खरीदता है,जबकि E बिन्दु पर वह सन्तरे की कीमत प्रति इकाई 1 रू. होने पर 5 इकाइयाँ खरीदताहै। इससे स्पष्ट है कि जब सन्तरे की कीमत घट जाती है तब उसकी माँग बढ़ जाती है।इसलिए माँग वक्र का ढाल ऋणात्मक है।
माँग को प्रभावित करने वाले तत्व
वस्तु की कीमत –किसी वस्तु की माँग को प्रभावित करने वाले सबसे प्रमुख तत्व उसकी कीमतहै। वस्तु की कीमत में परिवर्तन के परिणामस्वरूप उसकी माँग भी परिवर्तित होजाती है। प्राय: वस्तु की कीमत के घटने पर माँग बढ़ती है तथा कीमत के बढ़ने परमाँग घटती है।
उपभोक्ता की आय –उपभोक्ता की आय किसी भी वस्तु की माँग का दूसरा सबसे महत्वपूर्णनिधार्रक तत्व है। यदि वस्तु की कीमत मे कोई परिवतर्नन हो तो आय बढ़ने परवस्तु की माँग बढ़ जाती है तथा आय कम होने पर वस्तु की माँग भी कम हो जाती
है। गिफिन वस्तुओं (निकृष्ट वस्तुओ) के संबध में उपभोक्ता का व्यवहार इसकेविपरीत होता है।
धन का वितरण-समाज में धन का वितरण भी वस्तुओं की माँग को प्रभावित करता है। यदिधन का वितरण असमान है, अर्थात ् धन कुछ व्यक्तियों के हाथों में ही केन्द्रित है तोविलासितापूर्ण वस्तुओं की माँग बढेग़ी। इसके विपरीत, धन का समान वितरण है,अर्थात् अमीरी-गरीबी के बीच की दूरी अधिक नहीं है, तो आवश्यक तथा आरामदायकवस्तुओं की माँग अधिक की जायेगी।
उपभोक्ताओं की रूचि –उपभोक्ताओं की रूचि, फैशन, आदत, रीति-रिवाज के कारण भी वस्तु कीमाँग प्रभावित हो जाती है। जिस वस्तु के प्रति उपभोक्ता की रूचि बढ़ती है, उसवस्तु की माँग भी बढ़ जाती है जैसे – यदि लोग कॉफी को चाय की अपेक्षा अधिकपसंद करने लगते है। तो कॉफी की माँग बढ जायेगी तथा चाय की माँग कम होजायेगी।
सम्बन्धित वस्तुुओं की कीमत-किसी वस्तु की माँग पर उस वस्तु की संबंधित वस्तु की कीमत का भी प्रभावपडत़ा है। संबधित वस्तुएँ दो प्रकार की हाती हैं-
प्रतिस्थापन वस्तुएँवे हैं जो एक-दसूरे के बदले में प्रयागे की जाती है जैसे- चाय वकॉफी। यदि चाय की कीमत बढत़ी है और कॉफी की कीमत पूर्वत् रहतीहै। तो चाय की अपेक्षा कॉफी की माँग बढेग़ ी।
पूरक वस्तुएँवे है। जिनका उपयागे एक साथ किया जाता है; जसै – डबलरोटी वमक्खन। अब यदि रोटी की कीमत बढ़ जाये तो उसकी माँग घटेगी,फलस्वरूप मक्खन की माँगीाी घटेगी।
मौसम एवं जलवायु-वस्तु की माँग पर मासै म एवं जलवाय ु आदि का भी प्रभाव पड़ता है जैसे-पंखा, कूलर, फ्रीज, ठण्डा पेय आदि की माँग गर्मियों में बढ जाती है। इसी प्रकारऊनी कपडे, हीटर आदि की माँग सर्दियों में बढ़ जाती है। इसी प्रकार छात,े बरसातीकोट आदि की मागँ बरसात के दिनों में बढ जाती है।
माँग में परिवर्तन बनाम माँगी गयी मात्रा मेंं
अथवा
माँग का विस्तार या संकुचन बनाम माँग में वृद्धि या कमी
माँग में विस्तार तथा संकुचन- अन्य बातें यथास्थिर रहने पर, जब किसी वस्तु की कीमत में कमी होने के कारणउस वस्तु की अधिक मात्रा खरीदी जाती है तो उसे मागँ का विस्तार कहते है। इनके विपरीत,अन्य बातें यथास्थिर रहने पर, जब वस्तु की कीमत में वृद्धि के कारण उस वस्तु की पहलेसे कम मात्रा खरीदी जाती है, तब उसे ‘माँग का संकुचन’ कहते है।
माँग में वृिद्ध तथा कमी- वस्तु की कीमत के यथास्थिर होने के बावजूद, यदि उपभोक्ता की आय में वृद्धि होनेया स्थानापन्न वस्तु की वृद्धि उपभोक्ता की रूचि या पसदं गी के कारण वस्तु की माँगी गयीमात्रा में वृद्धि हो जाती है, तो इसे ‘माँग में वृद्धि’ कहते है। मागँ की वृद्धि की स्थिति में माँगवक्र स्थिर न रहकर दाहिनी ओर खिसक जाता है।
माँग नियम के अपवादअथवा क्या माँग -वक्र ऊपर भी उठ सकता है
माँग का नियम कुछ परिस्थितियों में लागू नहीं होता है। इन परिस्थितियों को माँगके नियम का अपवाद कहा जाता है। इन परिस्थितियों में वस्तु की कीमतों में वृद्धि होने परवस्तु की माँग भी बढ़ जाती है और माँग-वक्र नीचे से ऊपर बढ़ने लगता है। माँग के नियमके प्रमुख अपवाद हैं-
अनिवार्यताएँ-मानव जीवन की वे वस्तुएँ जिनका उपभागे करना मनुष्य के लिए अतिआवश्यक होता है। उदाहरण के लिए, खाद्यान्न, चावल, रोटी, कपड़ा इत्यादि। ऐसेवस्तुओं के मूल्य में वृद्धि होने के बावजूद इनकी माँग कम नहीं होती है। अत: इसदशा में मागँ का नियम क्रियाशील नहीं हागे ा, क्योकि उपभोक्ता को उतनी वस्तु काउपभागे तो करना ही पडेग़ा, जितना जीवन के लिए आवश्यक है। अत: मूल्य केबढ़ने पर मांग कम नही होती है।
मिथ्या आकर्षण –कछु वस्तुएँ ऐसी होती है। जो व्यक्ति को समाज में प्रतिष्ठा दिलाती हैं अथवामिथ्या आकषर्ण के कारण होती हैं जैसे – हीरे-जवाहरात आदि। अत: ऐसी वस्तुओंके मूल्यों में वृद्धि होने पर धनवान व्यक्ति अपने धन का प्रदर्शन करने के लिए इनवस्तुओं को खरीदने लगते है। इससे इन दिखावे वाली वस्तुओं की माँग, मूल्य बढ़नेपर भी बढ़ जाती है। इसके विपरीत, जब वस्तुओं की कीमतें घट जाती हैं तब येप्रतिष्ठामूलक अथवा प्रदशर्न की वस्तुएँ नहीं रह पाती है। अत: इनके मूल्य में कमीहोने पर धनवान व्यक्तियों के लिए इसकी माँग घट जाती है। इस प्रकार प्रतिष्ठामलू कया मिथ्या आकर्षण की वस्तुओं पर माँग का नियम लागू नहीं होता है।
गिफिन वस्तुएँ-गिफिन वस्तुओं के संबध में मागँ का नियम लागू नहीं होता है। घटियावस्तुओं की कीमत में कमी होने पर उपभोक्ता इनकी माँग घटा देता है अथवा कमकर देता है। इससे तो धन बच जाता है, उससे वह श्रेष्ठ (Superior) वस्तूएँ क्रय करलेता है। भले ही उनकी कीमतों में वृद्धि क्यों न हो, जैसे – ज्वार-बाजरा, गेहँू कीतुलना में घटिया किस्म की वस्तु है। चूँकि बाजार में गेहूँ का मूल्य बहुत अधिक होताहै इसलिए निर्धन लोग अपनी आय का अधिक भाग ज्वार-बाजरा पर खर्च करते हैंऔर अपनी आवश्यकता को सतुंष्ट करते हैं। एसे घटिया किस्म की वस्तुओं कीकीमतों में जब बहतु अधिक कमी होती है तो गरीब लोगों की वास्तविक आय अर्थात्उनकी खरीददारी करने की क्षमता बढ़ जाती है और अपनी बढ़ी हुई वास्तविक आयसे श्रेष्ठ किस्म की वस्तु खरीदते है। इससे उनके जीवन-स्तर में सुधार होता है। इसप्रकार, घटिया किस्म की वस्तुओं के मूल्य में कमी होने पर भी इसकी माँग में वृद्धिन होकर कमी हो जाती है और माँग-वक्र नीचे से ऊपर की ओर बढ़ने लगता है।
अज्ञानता-प्रभाव –कभी-कभी लोग अज्ञानतावश अधिक कीमत वाली वस्तुओं को अच्छी एवंश्रेष्ठ समझने लगते हैं और कम कीमत वाली वस्तुओं को घटिया किस्म की वस्तुमानने लगते हैं। इस अज्ञानता के कारण भी वस्तु को मूल्यों में बढा़ेत्तरी होने परउसकी माँग बढ जाती है और मूल्यों में कमी होने पर माँग कम हो जाती है।
दुर्लभ वस्तुएँ –यदि उपभोक्ता को किसी वस्तु के भविष्य में दुर्लभ हो जाने की आशंका हैतो कीमत बढ़ जाने पर उसकी मागँ बढ जायेगी, जैसे- खाडी़ युद्ध के कारण तलेव खाद्यान्नों के संबंध में यह बात सिद्ध हो चुकी है।
विशेष अवसर पर –विशेष अवसरों पर भी माँग का नियम लागू नहीं होता है, जैसे- शादी,त्यौहार या विशेष अवसर, इन अवसरों पर वस्तु के मूल्य बढ़ने पर माँग बढ़ती है।इसी प्रकार, यदि संक्रामक रागे फैल जाये तो मछली के मूल्य में कमी होने पर भीउसकी माँग कम हो जाती है।
माँग का नियम
माँग को समझने के पश्चात् यह जाना जा चुका है, इसका संबंध सदैव मूल्य औरसमय से होता है। बाजार में किसी वस्तु की एक निश्चित समय में कितनी माँग होगी यहउस वस्तु के मूल्यों पर निर्भर है। प्राय: वस्तु का मूल्य कम होता है तो माँग बढत़ी है औरमूल्य बढ़ने पर माँग कम होती है। संभव है कि शेष परिस्थितियों में ऐसा न हो यद्धु वअसमान्य परिस्थितियों में ऐसा हो सकता है।अन्य बातें समान रहने पर किसी वस्तु या सेवा के मूल्य में वृद्धि होने पर उसकी माँगकम हाती है और मूल्य घटने पर उसकी माँग बढत़ी है। यह मागँ का नियम कहलाता है।‘‘मागं के नियम के अनुसार मूल्य व मांगा गई मात्रा में विपरित संबध होता है।’’
मार्शल के अनुसार –‘‘विक्रय के लिए वस्तु की मात्रा जितनी अधिक होगी, गा्रहको आकर्षित करनेके लिए मूल्य भी उतना ही कम होना चाहिये ताकि पर्याप्त ग्राहक उपलब्ध हो सकें। अन्यशब्दों में मूल्य के गिरने से मांग बढत़ी है और मूल्य वृद्धि के साथ घटती है।’’
Nice
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