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सुशील डोभाल |
प्रिय विद्यार्थियों, कोरोना के इस चुनौती भरे समय मे स्कूल कॉलेज बंद रहने के कारण आप सभी की पढ़ाई बुरी तरह से प्रभावित हुई है। हमारी सरकारें, विद्यलयी शिक्षा विभाग, विद्यालय प्रशासन, विभागीय अधिकारी और सभी शिक्षक आपकी शिक्षा दीक्षा को लेकर चिंतित हैं और विभिन्न माध्यमो से आप तक शैक्षिक सामग्री पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है साथ ही ऑनलाइन माध्यम से आपको विषयगत लाभ देने का प्रयास किया जा रहा है। आप मे से अनेक विद्यार्थी इन सुविधाओं का अच्छा लाभ ले रहे हैं किंतु कुछ छात्र-छात्राओं और अभिभावकों की उदासीनता चिंतनीय है। कक्षा 11 व 12 के अर्थशास्त्र विषय के विद्यार्थियों के लिए मैं समय समय पर "हिमवंत" के माध्यम से शैक्षिक सामग्री और नोट्स प्रस्तुत करता रहा हूँ, इसी क्रम में आज आपके लिए अर्थशास्त्र विषय मे "मांग का अर्थ, परिभाषा, प्रकार और मांग वक्र" को विस्तार से प्रस्तुत कर रहा हूँ। आशा है मेरा यह प्रयास आपके लिए उपयोगी सावित होगा।
मांग (Demand) एवं पूर्ति (Supply) अर्थशास्त्र में दो महत्वपूर्ण घटक होते हैं। हमारी अर्थव्यवस्था में कुछ वस्तुएं महँगी होती हैं एवं कुछ सस्ती होती हैं। कुछ बहुत कम मात्र में होती हैं एवं कुछ बहुत बड़ी मात्र में उपलब्ध होती हैं। हम जब खरीदते हैं तो कुछ चीज़ें सस्ती होती हैं तो कुछ महँगी। इनके भाव बदलते रहते हैं। ये मुख्यतः इनकी मांग एवं आपूर्ति के कारण होता है।
मांग क्या होती है ?
सामान्यतः मांग का अर्थ किसी चीज़ को पाने की चाह माना जाता है लेकिन अर्थशास्त्र में यह भिन्न है। इसमें मांग में पाने की चाह के साथ साथ इसका मूल्य एवं इसका माप भी होता है। जैसे: आपको 5 रूपए प्रति पेंसिल के हिसाब से 10 पेंसिल चाहिए। यह मांग मानी जायेगी।
परिभाषा (Definition of demand)
प्रोफेसर मेयर्स के अनुसार “क्रेता की मांग उन सभी मात्राओं की तालिका होती है जिन्हें वह उस सामग्री के विभिन्न संभावित मूल्यों पर खरीदने के लिए तैयार रहता है।”
मांग के ज़रूरी अवयव :
कुछ ऐसे तत्व होते हैं जो यदि ना हो तो मांग केवल चाह बनके रह जाती है उसे हम मांग नहीं कह सकते हैं। अतः मांग कहलाने के लिए जिन तत्वों का होना ज़रूरी है वे निम्न हैं :
- पाने की इच्छा : किसी चाह को मांग उपभोक्ता की इच्छा का होना होता है। यदि वह उपभोक्ता किसी वस्तु को पाने की इच्छा नहीं रखता है तो हम इसे मांग नहीं कह सकते हैं।
2. खरीदने की क्षमता : यदि कोई उपभोक्ता कोई चीज़ खरीदने की इच्छा रखता है तो उसके साथ ही उसके पास उस वस्तु को खरीदने की क्षमता भी होनी चाहिए अन्यथा वह मांग नहीं कहलाएगी। खरीदने का कोई साधन का होना आवश्यक है।
3. खर्च करने की तत्परता : किसी उपभोक्ता के पास चाह हो सकती है, साधन हो सकता है लेकिन यदि उसके पास खर्च करने की तत्परता नहीं है तो वह उसे खरीद नहीं पायेगा।
4. निश्चित मूल्य : इन सभी तत्वों के साथ साथ एक वस्तु की मांग को बताने के लिए उसके साथ निश्चित मूल्य भी बताना होता है। जैसे हमें 2 किलो चीनी चाहिए तो हम बोलेंगे की 30 रूपए प्रति किलो के हिसाब से 2 किलो चीनी चाहिए।
5. निश्चित समय : ऊपर सभी तत्वों के साथ साथ एक निश्चित समय का भी होना ज़रूरी होता है। जैसे अभी उपभोक्ता को निश्चित वास्तु निश्चित समय में चाहिए बाद में उसकी कुछ और पाने की चाह हो जायेगी। अतः निश्चित समय का भी ज्ञात होना ज़रूरी होता है।
मांग तालिका (Demand Table)
मांग तालिका एक या एक से ज्यादा उपभोक्ताओं द्वारा निश्चित समय में किसी वस्तु के विभिन्न संभावित मूल्यों पर की गयी मांग की मात्रा के बारे में बताती है। यह मुख्यतः सो प्रकार की होती है :
- व्यक्तिगत मांग तालिका
- बाज़ार मांग तालिका
1. व्यक्तिगत मांग तालिका :
एक व्यक्तिगत मांग तालिका में केवल किसी एक विशेष व्यक्ति द्वारा निश्चित समय में की गयी वस्तु के विभिन्न संभावित मूल्यों पर मांग की मात्राओं की सूचि होती है। जब हम इस तालिका को बनाते हैं तो इसमें बायीं तरफ हम वस्तु के विभिन्न मूल्य लिखते हैं एवं दायीं तरफ हम उपभोक्ता द्वारा की गयी मांग लिखते है।
ऊपर दी गयी तालिका में जैसा की आप देख सकते हैं एक तरफ विभिन्न मूल्य दिए गए हैं एवं वहीं दूसरी तरफ मांग की विभिन्न मात्राएँ दी गयी हैं। आप यह भी देख सकते हिं की शुरुआत में संतरे का मूल्य केवल एक रूपए प्रति इकाई था तब इसकी 90 इकाइयों की मांग थी लेकिन धीरे धीरे यह मूल्य बढ़ा जिसके साथ यह मांग कम होती चली गयी।
जब इसका मूल्य 5 रूपए प्रति इकाई पर पहुंचा तब इसकी मांग केवल 50 इकाइयों तक सीमित रह गयी थी। इससे हमें पता चलता है की एक वस्तु के मूल्य एवं उसकी मांग में विपरीत सम्बन्ध होता है।
2. बाज़ार मांग तालिका :
एक बाज़ार मांग तालिका में किसी एक विशेष व्यक्ति का नहीं बल्कि एक निश्चित समय अवधि में वस्तु की विभिन्न कीमतों पर उनके सभी खरीददारों द्वारा वस्तु की माँगी गयी मात्राओं के कुल योग की सूचि होती है। जैसे मान लेते हैं की बाज़ार में केवल तीन खरीददार हैं। तो जो उन तीनों खरीददारों की विभिन्न संभावित मूल्यों पर मांग का योग होगा वही बाज़ार की मांग होगी। यह मांग ही बाज़ार की मांग होगी।
तालिका
जैसा की आप ऊपर दी गयी तालिका में देख सकते हैं हमें बाज़ार में केवल तीन ग्राहक दे रखे हैं अर्थात बार में केवल तीन ही खरीददार हैं। जो इन तीनों खरीददारों की मांग का योग होगा जो सबसे दायीं तरफ दे रखा है वही बाज़ार की मांग होगी। यहाँ भी जैसा आप देख सकते हिं बढ़ते मूल्य के साथ बाज़ार की मांग भी कम हो रही है।
मांग वक्र (Demand Curve in hindi)
मांग की तालिका का रेखाचित्र रूप ही मांग वक्र कहलाता है। जब हम मांग की मात्राओं को रेखाचित्र के रूप में प्रस्तुत करते हैं तो हमें एक वक्र प्राप्त होता है जिसे मांग वक्र कहा जाता है। निचे दिए गए रेखाचित्र में देखें :
जैसा की आप देख सकते हिं हमने संतरे के मूल्य एवं मांग को रेखाचित्र पर अंकित किया है। x अक्ष पर मूल्य है एवं y अक्ष पर उसकी मांग है। यहाँ आप देख सकते हैं पांच विभिन्न बिन्दुओं को अंकित किया गया है वे बता रहे हैं की इतने मूल्य पर इतनी मांग है।
जैसा की आप देख सकते हैं की जैसे जैसे मूल्य बढ़ रहा है वैसे वैसे इसकी माग कम हो रही है। यह मूल्य एवं मांग के बीच विपरीत सम्बन्ध को दर्शाता है।
मांग निर्धारित करने वाले तत्व (Factors affecting demand)
कुछ ऐसे घटक होते है जिनके कम या ज्याद होने से मांग की मात्र में भी फरक पड़ता है। आइये जानते हैं ऐसे कौन कौन से घटक है :
1. वस्तु की कीमत : यह घटक मांग पर प्रभाव डालने वाले घटकों में से सबसे महत्वपूर्ण है। ऐसा इसलिए है क्योंकि वस्तु की कीमत में परिवर्तन के परिणामस्वरूप उसकी माँग भी परिवर्तित हो जाती है। एक वस्तु के मूल्य में एवं उसकी मांग में विपरीत सम्बन्ध होता है। मूल्य के बढ़ने पर वस्तु की मांग स्वतः ही घाट जाती है एवं घटने पर मांग बढ़ जाती है।
अन्य तत्व :
2. सम्बंधित वस्तुओं की कीमत : एक निश्चित वस्तु की दो तरह की सम्बंधित वस्तुएं होती है। वैकल्पिक वस्तु एवं सहायक वस्तु।
- वैकल्पिक वस्तु वह होती है जो एक मुख्या वास्तु की जगह पर प्रयोग की जा सकती है। जैसे कोका कोला एवं पेप्सी एक दुसरे के स्थान पर प्रयोग किये जा सकते हैं। यदि वैकल्पिक वस्तुओं की मांग बढ़ती हैं तो मुख्य वस्तु की मांग कम हो जाती है। इससे हम यह जान सकते हैं की वैकल्पिक वस्तु एवं मुख्य वस्तु की मांग में विपरीत सम्बन्ध होता है।
- पूरक वस्तु वे होती हैं जिन्हे मुख्य वस्तु के साथ प्रयोग किया जाता है। जैसे ब्रेड के साथ बटर हैं। यदि ब्रेड की मांग बढ़ती है तो उसके साथ खाने के लिए बटर की मांग भी बढ़ेगी। इससे हम यह जान सकते हैं की पूरक वस्तु एवं मुख्य वस्तु की मांग में सीधा सम्बन्ध होता है।
3. उपभोक्ता की आय : किसी भी व्यक्ति की आय के अनुसार मांग में भी इजाफा होता है। यदि किसी व्यक्ति की आय अधिक है तो जाहिर सी बात है की उसके द्वारा किसी भी वस्तु या सेवा को खरीदने में किसी भी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा। अर्थात धनी ग्राहक मांग के नियम को सकारात्मक तरीके से प्रभावित करते हैं।
4. ग्राहक की पसंद : यह घटक भी किसी वस्तु की मांग को प्रभावित करता है। यदि और वस्तु की तुलना में ग्राहक की एक वस्तु में ज्यादा रूचि होती है तो उस वस्तु की मांग में इजाफा होता है। अतः यह घटक भी ज़िम्मेदार होता है।
5. भविष्य की आस : भविष्य में यदि व्यक्ति को ऐसा लगता ह की कीमतों में या उसकी आय में बदलाव होगा तो इससे वर्तमान की मांग में प्रभाव पड़ेगा।
- भविष्य की कीमत- किसी भी वस्तु की मांग में इजाफा तब होता है जब किसी ग्राहक को इस बात का अंदाजा हो जाता हैं की अमुक वस्तु की कीमत भविष्य में बढ़ेगी। साथ ही यदि किसी वस्तु की कीमत के भविष्य में घटने की उम्मीद होती है तो उसकी मांग में भी कमी होती है।
- भविष्य की आय- किसी भी वस्तु की मांग में इजाफा तब होता है जब किसी ग्राहक को इस बात का अंदाजा हो जाता हैं कि उसकी आय में भविष्य में वृद्धि होगी। साथ ही यदि इस बात का अंदाजा हो जाये कि ग्राहक की आय भविष्य में घटेगी तो उसकी मांग में भी कमी होती है।
6. धन का वितरण : विभिन्न लोगो के बीच धन का किस प्रकार वितरण किया गया है यह भी वस्तुओं की मांग पर प्रभाव डालता है। जैसे यदि धन का वितरण असमान है एवं अमीरों के पास ज्यादा धन है तो लक्ज़री वस्तु की मांग ज्यादा होगी लेकिन यदि वितरण समान है तो आवश्यक वस्तुओं की ज्यादा मांग होगी।
मांग वक्र में परिवर्तन (Change in Demand Curve)
मांग वक्र में दो तरह से परिवर्तन होते हैं:
- मांग वृद्धि होना (अन्य तत्वों में परिवर्तन की वजह से)
- मांग में कमी होना,(अन्य तत्वों में परिवर्तन की वजह से)
- मांग का विस्तार होना (स्वयं के मूल्य में परिवर्तन की वजह से)
- मांग का संकुचन होना (स्वयं के मूल्य में परिवर्तन की वजह से)
1. मांग में वृद्धि होना :
जब किसी वस्तु का मूल्य नहीं बदले लेकिन किन्हीं दुसरे तत्वों में बदलाव आने की वजह से उसकी मांग बढ़ जाए तो उसे मांग में वृद्धि होना बोलते हैं। जब मांग में वृद्धि होती है तो मांग वक्र दायीं ओर खिसक जाता है।
जैसा की आप ऊपर दिए गए चित्र में देख सकते हैं यहाँ वस्तु का मूल्य समान है लेकिन किन्हीं अन्य तत्वों में बदलाव आने की वजाह से इसकी मांग 80 इकाइयों से बढ़ कर 115 इकाई हो गयी है। इसके साथ ही मांग वक्र D से थोडा खिसक कर D2 पर आ गया है। मांग में वृद्धि होने का वक्र पर यह असर होता है।
कारण :
- उपभोक्ता की आय में वृद्धि होना
- पूरक वस्तु के मूल्य में गिरावट
- वैकल्पिक वस्तु का मूल्य बढ़ना
- भविष्य में कीमत बढ़ने की आस होना
2. मांग में कमी आना :
जब किसी वस्तु के स्वयं के मूल्य में परिवर्तन ना आये लेकिन अन्य घटकों में परिवर्तन आने की वजह से मांग में कमी आ जाए तो सी परिवर्तन को मांग में कमी आना बोलते हैं। इसमें वस्तु के मूल्य पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है लेकिन इसकी मांग कम हो जाती है। ऐसा होने पर वक्र बायीं और खिसक जाता है।
ऊपर दिए गए उदाहरण में जैसा की आप देख सकते हैं यहाँ एक वस्तु के मूल्य में कोई परिवर्तन नहीं हो रहा है लेकिन किन्हीं अन्य घटकों में परिवर्तन होने की वजह से इसकी मांग में कमी आ रही है। ऐसा होने से मांग वक्र खिसक कर D से D2 तक आ जाता है। अतः मांग में कमी आने का वक्र में यह प्रभाव पड़ता है।
कारण :
- उपभोक्ता की आय में कमी होना
- पूरक वस्तु के मूल्य में बढ़ोत्तरी
- वैकल्पिक वस्तु के मूल्य में गिरावट
- भविष्य में कीमत कम होने की आस होना
3. मांग का विस्तार होना :
ऐसी स्थिति जब वस्तु के अन्य सभी तत्वों में कोई परिवर्तन ना आये लेकिन स्वयं के मूल्य में कमी आ जाने से मांग में बढ़ोतरी हो जाए तो इसे मांग का विस्तार होना बोलते हैं। ऐसा होने पर वक्र अपनी जगह से नहीं हिलता लेकिन मांग में बढ़ोतरी देखि जा सकती है।
ऊपर दिए गए चित्र में जैसा की आप आप देख सकते हैं यहाँ मूल्य 16 रूपए से 12 रूपए पर गिर गया है जिसके कारण मांग 60 इकाई से 80 इकाइयों तक बढ़ गयी है। यहाँ हम देख सकते हैं की मांग के बढ़ने से वक्र अपनी जगह से नहीं हिला है लेकिन वर्तमान मांग में बदलाव आया है। इसकी वजह से इस वस्तु की वर्तमान मांग A बिंदु से हटकर B बिंदु पर बन गयी है। अतः मांग में विस्तार होने से वक्र पर यह असर पड़ता है।
4. मांग में संकुचन होना :
ऐसी स्थिति तब होती है जब किसी वस्तु के मांग के अन्य तत्वों में कोई बदलाव नहीं होता है लेकिन इसके मूल्य में बढ़ोतरी होने से मांग में गिरावट आ जाती है। ऐसी स्थिति को मांग में संकुचन आना कहते हैं। ऐसा होने पर वक्र पानी जगह से नहीं हिलता है बस मांग की मात्र में कमी आ जाती है जिससे वह बायीं और की तरफ आती है एवं मूल्य ऊपर की और बढ़ता है।
जैसा की आप ऊपर दिए गए चित्र में देख सकते हैं यहाँ वस्तु का मूल्य 12 रूपए से बढ़कर 16 रूपए हो गया है जिसके फलस्वरूप मांग 80 इकाइयों से 60 इकाइयों पर आ गयी है। इससे वर्तमान मांग A बिंदु से हटकर B बिंदु पर बन गयी है। ऐसा होने से मांग वक्र की जगह में कोई बदलाव नहीं आया है। अतः मांग में संकुचन आने से वक्र पर यह असर पड़ता है।
मांग का नियम (Law of demand)
मांग के नियम के अनुसार वस्तु की कीमत एवं इसकी मांगी गयी मात्रा में विपरीत संबंध होता है।
विभिन्न तालिकाओं में हम देख चुके हैं की जैसे जैसे मूल्य काम होता है तो उपभोक्ता किसी वस्तु की ज़्यादा मांग करता है लेकिन यदि उसकी कीमत में इजाफा होता है तो फिर वह उस वस्तु की मांग भी कम कर देता है। इससे इस नियम की भी पुष्टि होती है।
मांग के नियम का चित्रित रूप
ऊपर दिए गए चित्र में जैसा की आप देख सकते हैं यहां Y अक्ष पर किसी निश्चित वस्तु की कीमत दी हुई है एवं X अक्ष पर उसकी उपभोक्ता द्वारा मांग दी हुई है। इस चित्र में साफ देखा एवं समझा जा सकता है। हम A बिंदु पर देख सकते हैं की यहाँ वस्तु की कीमत उच्चतम है लेकिन इसके साथ ही इसकी मांग इसके विपरीत न्यूनतम है। जैसे जैसे हम इस रेखा में निचे चलते जाते हैं तो हम आखिरी में E बिंदु पर आते हैं जहां यह देखा जा सकता है की वस्तु की कीमत न्यूनतम है लेकिन इसके विपरीत इसकी उपभोक्ताओं द्वारा मांग उच्चतम है।
मांग के नियम के अपवाद के कुछ उदाहरण :
कुछ ऐसी परिस्थितियाँ होती हैं जब मांग के रेखाचित्र में मांग वक्र नियम के अनुसार नहीं होता। वह नीचे जाने के बजाय ऊपर की ओर उठता है। हम अभी जानेंगे की ऐसी कौन-कौन सी परिस्थितियाँ है जब ऐसा होता है :
1. बुनियादी ज़रुरत की वस्तुएं : ये कुछ ऐसी वस्तुएं होती हैं जिनका उपभोग अति आवश्यक होता है जैसे आता, चावल दाल आदि। इन वस्तुओं का उपभोग व्यक्ति नित्य प्रति करता है। यदि इनका मूल्य बढ़ भी जाए फिर भी कोई इनका उपभोग करना छोड़ेगा नहीं। अतः यह मांग के नियम के अपवाद की स्थिति बन जाती है जब कीमतों के बढ़ने पर मांग में कोई कमी देखने को नहीं मिलती है।
2. विलासिता की वस्तुएं : हीरे, सोने चांदी के जवाहरात आदि कुछ ऐसी वस्तुएं होती हैं जिसे ऊंची प्रतिष्ठा वाले लोग ज़्यादा खरीदते हैं। यह मुख्यतः दिखावे के लिए प्रयोग किये जाते हैं। इन वस्तुओं की कीमत यदि बढ़ जाए तो लोग इसे खरीदना नहीं छोड़ेंगे क्योंकि धनवान लोगों के पास पैसे की कोई कमी नहीं होती एवं वे ही ऐसी वस्तुओं के मुख्या उपभोक्ता होते हैं। अतः यह भी मांग के नियम के अपवाद की स्थिति बन जाती है जब वक्र बढ़ती कीमतों के बावजूद नीचे की ओर नहीं जाता है।
3. दुर्लभ वस्तुएं : दुनिया में कई ऐसी चीज़ें होती है जोकि मांग के अनुरूप उपलब्ध नहीं होती हैं। इनकी मात्रा बहुत सीमित होती है। जैसे दुर्लभ पत्थर जोकि धरती के नीचे पाए जाते है। ये कभी कभी खोजे जाते हैं एवं बहुत ज्यादा मेहेंगे होते हैं। इतनी अधिक कीमतों के बावजूद भी लोग अपने शौक को पूरा करने के लिए खरीदते हैं। अतः ये वस्तुएं भी मांग के नियम के अनुरूप काम नहीं करती हैं।
4. गिफिन वस्तुएं : गिफ़िन वस्तुएंऐसी विशेष प्रकार की सुलभ वस्तुएं होती हैं जिनका यदि मूल्य काम कर दिया जाए तो इसकी मांग भी काम हो जायेगी एवं यदि इनका मूल्य बढ़ा दिया जाए तो इनकी मांग भी बढ़ जायेगी। हम बाजरे का उदाहरण लेते हैं जब किसी व्यक्ति की आय कम हो जाती है तो वह गेहूं के मुकाबले बाजरा ज्यादा उपभोग करेगा क्योंकि यह सस्ता है एवम इससे बाजरे की मांग बढ़ जाती है। लेकिन यदि उसकी आय बढ़ जाती है तो वह बाजरे के मुकाबले गेहूं लेना पसंद करेगा जिससे बाजरे की मांग कम हो जायेगी। यह मांग के नियम के अपवाद की स्थिति बना देता है।
साभार- द इंडियन वायर
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Economics ka first chapter Hindi medium
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ReplyDeleteWe’ve updated the myCOLOR personality quiz to be more accurate and effective. With the addition of twelve new questions, the quiz results can better determine your personality type and how you can improve your work and social interactions with others. By encouraging your friends and colleagues to take the my COLOR personality quiz , you’ll be able to leverage your personality’s specific color traits and theirs to strengthen your relationships through better communication and understanding.
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Blue and Crimson
You’re both committed and hard-working which makes you the most boring color combination of all time; laughing at yourselves will help with this. Incidentally, you are also probably the most productive color combination of all time.
Crimson and Orange
Crimson and Orange may be at different ends of the introvert-extrovert spectrum. It can be a lot of fun to hang out, as long as you know this about each other.
Green and Purple
Purples and Greens most likely get along perfectly well. If you can accept each other’s attitudes as genuine, Purple and Green make for a relaxed, conflict-free team.
Green and Orange
Green and Orange are not the best duo to move a project forward aggressively. You are both perfectly happy dwelling in the comfort zone. If you start to feel stuck, you may try bringing other personality types into the mix.
Orange and Purple
Purples and Oranges will tend to communicate well with each other; Oranges try to be great listeners, and Purples are expressive; well, at least when they have something original to share. Purples may enjoy hanging out with someone who laughs at their odd remarks (it takes creative energy to come up with new things to say!), and lobs a joke of their own back.
Grey and Orange
Greys and Oranges both want to improve relationships. Oranges may put themselves out there in risky and vulnerable ways, and may get hurt by a Grey, especially if a Grey uses the opportunity to crack a joke.
Grey and Grey
Who hates each other more: two punks who love different bands, or a blue-haired social justice warrior stuck in a room with an internet troll? When you buck the establishment, it's hard to get along with other anti-establishment types unless their interests align exactly with your own. Fortunately, the antidote is also your strong suit: self-deprecating humor and snarky comments. Admit the flaws in your own crusade, and hopefully they'll admit the flaws in theirs too and you can have a good laugh about the hopelessness of it all. Then move on and get some freakin' work done. Shoulder to shoulder you'll quickly find that the other person brings sharp clarity and new perspectives that can really push the project forward and expand your own understanding.