अर्थशास्त्र के विद्यार्थियों के लिए 'भारत मे निर्धनता' पर उपयोगी नोट्स यहां पढ़ें।
विकासशील देशों के संबंध में पहला वैश्विक गरीबी अनुमान वर्ल्ड डेवलपमेंन्ट रिपोर्ट 1990ई में मिलता है। वर्ल्ड डेवलपमेंन्ट रिपोर्ट में गरीबी को परिभाषित करते हुए कहा है कि गरीबी निम्नतम जीवनयापन स्तर करने की असमर्थता है, यानी जब निम्नतम जीवनयापन-स्तर भी प्राप्त नहीं किया जा सके तब उस स्थिती को गरीबी कहते है। सेद्धान्तिक रूप में गरीबी की माप करने के लिए सापेक्षित एवं निरपेक्ष प्रतिमानों का प्रयोग करते है।
1. सापेक्ष गरीबी : सापेक्ष गरीबी यह स्पष्ट करती है कि विभिन्न आय वर्गों के बीच कितनी विषमता है। प्राय: इसे मापने की दो विधियां है।
नोट : लॉरेंज वक्र जितनी ही पूर्ण समता रेखा के पास होगी, आय की विषमता उतनी ही कम होगी। लॉरेंज वक्र तथा गिनी गुणांक आय की विषमता की माप से संबंधित है, आय की विषमता को प्रतिव्यक्ति आय या कुजनेट्स विषमता वक्र से नहीं मापा जा सकता
नोट : लॉरेंज वक्र को 1905ई मं मैक्स ओलॉरेंज ने एवं गिनी गुणांक का 1912 में कोरेडो गिनी (इटली) ने विकसित की।
2. निरपेक्ष गरीबी : निरपेक्ष गरीबी का निर्धारण करते समय मनुष्य की पोषक आवश्यकताओं तथा अनिवार्यताओं के आधार पर आय अथवा उपभोग व्यय के न्यूनतम स्तर को ज्ञात किया जाता है। इसके अन्तर्गत हम एक निश्चित मापदण्ड के आधार पर यह तय करते है ही कितने लोग इस मापदण्ड के नीचे है और उन्हें हम गरीब कहते है। इस निश्चित मापदण्ड को हम गरीबी रेखा या निर्धनता रेखा कहते है। यानी निर्धारित किये न्यूनतम उपभोग व्यय को निर्धनता रेखा कहते है। इस न्यूनतम निर्धारित स्तर से कम व्यय करने वाले व्यक्तियों को गरीब कहा जाता है।
नोट : निर्धनता की माप के लिए निरपेक्ष प्रतिमान का सर्वप्रथम प्रयोग खाद्य एवं कृषि संगठन (F.A.O.) के प्रथम महा निदेशक आर. वायड ने 1945ई में किया ।
भारत में निर्धनता
भरत में निर्धनता की माप करने के लिए निरपेक्ष प्रतिमान को प्रयोग किया जाता है। हमारे देश में योजना आयोग द्वारा गरीबी निर्धारण के सम्बन्ध मं एक वैकल्पिक परिभाषा स्वीकार की जिसमें आहार संबंधी जरूरतों को ध्यान में रखा गया हे। इस अवधारणा के अनुसार उस व्यक्ति को निर्धनता की रेखा में नीचे माना जाता है, जो ग्रामीण क्षेत्रों में प्रतिदिन 2400 कैलोरी व शहरी क्षेत्रों मं 2100 कैलोरी भोजन प्राप्त करने मं असमर्थ है
नोट : भारत में निर्धनता रेखा के निर्धारण का पहला अधिकारिक प्रयास योजना आयोग द्वारा जुलाई 1962 ई में किया गया । भारत में गरीबी निर्धारण का इतिहास
दादा भाई नौरोजी : इनकी पुस्तक 'पावर्टी एंड अनब्रिटिश रूल इन इंडिया' में पहली बार गरीबी को (जी) की न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति से लगाया था।
नीलकांत दांडेकर और वीएम रथ के फॉर्मूले : इनके फॉर्मूले के आधार पर स्वतंत्रता के बाद पहली बार 1971 में वैज्ञानिक तरीके से गरीबी रेखा का निर्धारण किया गया जिसमें नेशनल सेंपल सर्वे एनएसएस के उपभोग खर्च के ऑंकडों का इस्तेमाल किया गया। वर्ष 1960-61 पर आधारित थे।
वई के अलध समिति : वाई के अलध की अध्यक्षता में योजना आयोग ने 1979 मं इस समिति का गठन किया। इस समिति ने दांडेकर एवं रथ के फॉर्मूले का आधार वर्ष बदलकर 1973-74 पर दिया और पहली बार शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए कैलोरी की अलग-अलग मात्रा निर्धारित की, जो क्रमश: 2100कैलोरी और 2400 कैलोरी थी।
लकडवाला समिति : योजना आयोग ने देश मं निर्धनता की माप के लिए 1989ई में प्रो. डी. टी. लकडवाला की अध्यक्षता में एक समिति गठित की 1993 मं इस समिति ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। इसके अनुसार प्रत्येंक राज्य में मूल्य स्तर के आधार पर अलग-अलग निर्धनता रेखा का निर्धारण किया गा यानी प्रत्येक राज्य की निर्धनता रेखा भिन्न-भिन्न होगी। इस प्रकार इसके अनुसार 35 गरीबी रेखाऍ है जो शुरू में 28 थी। इस समिति के प्रत्येक राज्य में ग्रामीण और शहरी निर्धनता के लिए अलग-अलग मूल्य सूचकांक की बात की जो है--
सुरेश तेंदुलकर समिति : योजना आयोग ने वर्ष 2004 मं सुरेश तेंदुलकर की अध्यक्षता में समिति बनाई जिसने अपनी रिपोर्ट 2009 मं सोंपी। तेंदुलकर समिति का मुख्य उद्देश्य इसका परीक्षण करना था कि क्या भारत में गरीबी वास्तव में गिर रही है या नहीं जैसा एनएसएसओं के 61वें चक्र से स्थापित होता है इसके साथ ही नई गरीबी रेखा तथा गरीबी के संबंध मं अनुमान प्रस्तुत करना था। इसने गरीबी रेखा निर्धारण उपभोग में लाए जा रहीं खाद यानों के अलावा छ: बुनियादी अवाश्यचकताओं -- शिक्षा, स्वास्थ्य, बुनियादी संरचना, स्वच्छ वातावरण तथा महिलाओं की काम तथा लाभ तक पहुँच के आधार पर होगा। समिति ने ग्रामीण क्षेत्र के लिए 2004-05 मूल्य पर 446.68 रुपया (2012 के मूल्य 816रुपया) प्रति व्यक्ति प्रति माह तथा शहरी क्षेत्र के लिए 578.80 रुपया (2012 के मूल्य पर 1000 रुपए) मासिक रुपया प्रति व्यक्ति उपभोग रखा।
नोट : तेन्दुलकर समिति ने गरीबी रेखा के निर्धारण के लिए जीवन निर्वाह लागत सूचकांक यानी प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय को आधार बनाया।
सी. रंगराजन समिति : संयुक्त राष्ट्रसंघ के अंग खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) गरीबी का आकलन उपभोग के पोषण मुल्य अर्थात कैलोरी मूल्य के ही आधार पर करता है, इसीलिए योजना आयोग ने तेन्दुलकर समिति की जगह सी. रंगराजन की अध्यक्षता मं 2012 में नई समिति गठित की जिसने अपनी रिपोर्ट जुलाई 2014 में प्रस्तुत की। इसने तेंन्दुलकर समिति के आकलन के तरीकों को खारिज कर दिया। रंगराजन समिति के अनुसार वर्ष 2011-12 मं 29.5प्रतिशत लोग गरीबी थे, (जबकि तेन्दुलकर समिति ने ये अनुमान 21.9 प्रतिशत दिया था ) ग्रामीण जनसंख्या का 30.09 प्रतिशत शहरी जनसंख्या का 26.4प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से नीचे थे। रंगराजन समिति ने अखिल भारतीय स्तर पर ग्रामीण क्षेत्र के लिए 972 रुपए तथा शहरी क्षेत्र के लिए 1407 रुपया प्रतिव्यक्ति मासिक उपभोग व्यय को गरीबी रेखा के रूप में परिभाषित किया ।
निर्धनता के नवीनतम ऑंकडे :
देश में निर्धनता रेखा से नीचे की जनसंख्या के सम्बन्ध में ताजा ऑंकडे योजना आयोग द्वारा जुलाई 2013 में जारी किये गये। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) के 68 वें दौर के सर्वेक्षण पर आधारित यह ऑंकडे 2011-2012 के लिए है तथा सुरेश तेन्दुलकर समिति द्वारा सुझाए गए फॉर्मूले पर आधारित है । इस ऑंकडो के अनुसार ----
गरीबी निवारण, रोजगार, बीमा, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं बाल विकास स संबंधित कुछ प्रमुख योजनाऍ :
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