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Sushil Dobhal, PGT Economic |
प्रिय विद्यार्थियों, आशा है आप सब बोर्ड परीक्षा के लिए बेहतर ढंग से तैयारी कर रहे होंगे। आप अच्छी तरह जानते है कि अन्य विषयों की तुलना में अर्थशास्त्र विषय की तैयारी के लिए आपको अतिरिक्त समय देते हुए गम्भीरतापूर्वक अध्ययन करना है। सीबीएसई और उत्तराखंड बोर्ड के विद्यार्थियों के लिए यहां "आय निर्धारण" पाठ से सम्बंधित नोट्स प्रस्तुत कर रहा हूँ। इन्हें गम्भीरता के साथ पढ़े व नोट करें। मुझे आशा है कि यह आपके लिए उपयोगी सावित होंगे।
स्मरणीय बिन्दु-
- एक अर्थव्यवस्था के समस्त क्षेत्रों द्वारा एक दिए हुए आय स्तर पर एवं एक निश्चित समयावधि में समस्त अंतिम वस्तुओं एवं सेवाओं के नियोजित क्रय के कुल मूल्य को समग्र मांग कहते हैं। एक अर्थव्यवस्था में वस्तुओं व सेवाओं की कुल मांग को समग्र मांग (AD) कहते हैं इसे कुल व्यय के रूप में मापा जाता है।
आय व रोजगार का परंपरावादी सिद्धांत (Classical Theory of Income and Employment)
समग्रपूर्ति पर परंपरावादी व केन्स का मत (Classical and Keynsian opinion on AS)
समग्र माँग का अर्थ एवं घटक (Meaning Components of Aggregate Demand or AD)
समग्र माँग का आशय उस मुद्रा राशि से है जिसे समस्त क्रेता अर्थव्यवस्था में उत्पादित वस्तुओं व सेवाओं के क्रय पर, किसी विशेष अवधि में, खर्च करने को तैयार है।
जहाँ C = निजी उपभोग माँग
I = निजी निवेश माँग, G = सरकारी व्यय, X - M = शुद्ध निर्यात
AD = C + I + G + (X - M) दो क्षेत्र वाली अर्थव्यवस्था में (AD = C + I)
समग्र पूर्ति (Aggregate Supply or AS)
- अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं की कुल पूर्ति को मोटे रूप में समग्र पूर्ति कहते हैं।
उपभोग फलन (Consumption Function)
- आय और उपभोग के बीच फलनात्मक संबंध को उपभोग प्रवृत्ति (या उपभोग फलन) कहते हैं अर्थात् आय का कितना भाग, उपभोग वस्तुओं पर खर्च किया गया है।
- उपभोग फलन को हम निम्न समीकरण द्वारा प्रकट करते हैं। C = a + by
बचत फलन (Saving Function)
आय में से उपभोग पर खर्च करने के बाद शेष भाग बचत कहलाती हैं। सूत्र के रूप में
बचत = आय - उपभोग
आय और बचत में फलनात्मक संबंध को बचत प्रवृत्ति या बचत फलन कहते हैं।
सूत्र के रूप में- S = f(y) यहाँ S = बचत, Y = आय, f = फलनात्मक सम्बन्ध
बचत फलन का समीकरण - S =
−
S¯¯¯
औसत उपभोग प्रवृत्ति (Average Propensity to Consume or APC)
- समग्र उपभोग और समग्र आय के अनुपात की औसत उपभोग प्रवृत्ति कहते हैं। यह कुल आय का वह भाग है जो उपभोग पर खर्च किया जाता हैं।
समीकरण के रूप में:
APC=
Cy
APC के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण बिन्दु
- APC इकाई से अधिक रहता है जब तक उपभोग राष्ट्रीय आय से अधिक होता है। समविच्छेद बिन्दु से पहले, APC > 1.
- APC = 1 समविच्छेद बिन्दु पर यह इकाई के बराबर होता है जब उपभोग और आय बराबर होता है। C = Y
- आय बढ़ने के कारण APC लगातार घटती है।
- APC कभी भी शून्य नहीं हो सकती, क्योंकि आय के शून्य स्तर पर भी स्वायत उपभोग होता है।
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (Marginal Propensity to Consume or MPC)
Y अतः MPC = 1, इसी प्रकार यदि सम्पूर्ण अतिरिक्त आय की बचत कर ली जाती है तो
ΔC=0औसत बचत प्रवृत्ति (Average Propensity to Save on APS)
- कुल बचत और कुल आय का अनुपात, औसत बचत प्रवृत्ति (APS) कहलाती है। कुल बचत (S) को कुल आय (Y) से भाग करने पर APS ज्ञात किया जाता है।
सूत्र के रूप में-
APS=
SY
औसत बचत प्रवृत्ति APS की विशेषताएँ
- APS कभी भी इकाई या इकाई से अधिक नहीं हो सकती क्योंकि कभी भी बचत आय के बराबर तथा आय से अधिक नहीं हो सकती।
- APS शून्य हो सकती है: समविच्छेद बिन्दु पर जब C = Y है तब S = 0.
- APS ऋणात्मक या इकाई से कम हो सकता है। समविच्छेद बिन्दु से नीचे स्तर पर APS ऋणात्मक होती है। क्योंकि अर्थव्यवस्था में अबचत (Dissavings) होती है तथा C > Y.
- APS आय के बढ़ने के साथ बढ़ती हैं।
सीमांत बचत प्रवृत्ति (Marginal Propensity to Save on MPS)
- आय में परिवर्तन के फलस्वरूप बचत में परिवर्तन के अनुपात को सीमांत बचत प्रवृत्ति MPS कहते हैं।
समीकरण के रूप में-
APS=
ΔSΔY
औसत उपभोग प्रवृत्ति (APC) तथा औसत प्रवृत्ति (APS) में सम्बन्ध
सदैव APC + APS = 1 यह सदैव ऐसा ही होता है, क्योंकि आय को या तो उपभोग किया जाता है या फिर आय की बचत की जाती है।
प्रमाण: Y = C + S दोनों पक्षों का Y से भाग देने पर
YY=
CY+
SY
1 = APC + APS अथवा APC = 1 - APS या APS = 1-APC। इस प्रकार APC तथा APS का योग हमेशा इकाई के बराबर होता है।
MPC और MPS में संबंध (Relationship between MPC and MPS)
.
दोनों पक्षों को AY से भाग करने पर
ΔYΔY=
ΔCΔY+
ΔSΔYसमता बिंदु (Break-even Point)
- समता बिंदु से तात्पर्य आय के स्तर में उस बिंदु से है जिस बिंदु पर उपभोग, आय के बराबर हो जाता है।
निवेश फलन
आय तथा रोजगार के संतुलन स्तर का निर्धारण (Determination of Equilibrium Level of Income and Employment)
- आय तथा रोजगार निर्धारण के आधुनिक सिद्धांत के अनुसार, किसी अर्थव्यस्था में किसी निश्चित समय में, आय तथा रोजगार का निर्धार्न उस स्तर पर होता है। जहाँ समग्र माँग तथ समग्र पूर्ति बराबर होते हैं। इस स्थिति में बचत तथा निवेश भी बराबर होते हैं।
निवेश गुणक (Investment Multiplier)
- निवेश में वृद्धि के फलस्वरूप, आय में वृद्धि के अनुपात का निवेश गुणक कहते हैं।
निवेश गुणांक (K) का MPC और MPS से संबंध (Relationship of Multiplier with MPC and MPS)
-
- गुणक (K) और MPC में सीधा संबंध है अर्थात् MPC बढ़ने पर गुणक बढ़ता है और MPC घटने पर गुणक भी घटता है।
- गुणक (K) और MPS में विपरीत संबंध है अर्थात् MPS बढ़ने से गुणक कम हो जाता है और MPS गिरने से गुणक बढ़ जाता है।
अवस्फीतिक अंतराल और इसका माप (Deflationary Gap and its Measurement)
- किसी अर्थव्यस्था में पूर्ण रोजगार की स्थिति को बनाए रखने के लिए जितनी समग्र माँग की आवश्यकता होती है, यदि समग्र माँग उससे कम हो तो इन दोनों के अंतर को अवस्फीतिक अंतराल कहा जाता है, ऐसी स्थिति में अर्थव्यवस्था में अनैच्छिक बेरोजगारी पाई जाती है।
अधिमाँग (Excess DEmand)
- अधिमाँग से अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें समग्र माँग अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोजगार स्तर के अनुरूप समग्र पूर्ति से अधिक होती है।
अधिमाँग को ठीक करने के उपाय (Measures to Correct Excess Demand)
- राजकोषीय नीति या बजट घाटे में कमी
- आय नीति
- व्यय नीति
- सार्वजनिक ऋण
- घाटे की वित्त व्यवस्था
- मौद्रिक नीति
मात्रात्माक्र उपाय
- बैंक दर
- खुले बाजार की क्रियाएँ
- नकद-रिजर्व अनुपात
- सांविधिक तरल अनुपात
गुणात्मक उपाय
- सीमांत आवश्यकताएँ
- नैतिक दबाव
न्यून (अभावी) माँग को ठीक करने के उपाय (Measures to Correct Deficient Demand)
राजकोषीय नीति
- सार्वजनिक व्यय में वृद्धि
- करों में कमी
- सार्वजनिक ऋणों में कमी
- घाटे की वित्त व्यवस्था
मौद्धिक नीति
- बैंक दर
- खुली बाज़ार प्रक्रिया
- सदस्य बैंकों के रिजर्व अनुपात में परिवर्तन
- सीमांत अनिवार्यताओं में परिवर्तन
एक अर्थव्यवस्था की सभी उत्पादक इकाईयों द्वारा एक निश्चित समयावधि में सभी अंतिम वस्तुओं एवं सेवाओं के नियोजित उत्पादन के कुल मूल्य को समग्र पूर्ति कहते हैं। समग्र पूर्ति के मौद्रिक मूल्य को ही राष्ट्रीय आय कहते हैं। अर्थात् राष्ट्रीय आय सदैव समग्र पूर्ति के समान होती है।
AS = C + S
समग्र पूर्ति देश के राष्ट्रीय आय को प्रदर्शित करती है।
AS = Y (राष्ट्रीय आय)
उपभोग फलन आय (Y) और उपभोग (C) को बीच फलनात्मक सम्बन्ध को दर्शाता है।
C = f(Y)
यहाँ C = उपभोग, Y = आय, f = फलनात्मक सम्बन्ध
उपभोग फलन की समीकरण: C =
C¯¯¯¯
+ MPC. Y
स्वायत्त उपभोग (
C¯¯¯¯- ): आय के शून्य स्तर पर जो उपभोग होता है उसे स्वायत्त उपभोग कहते हैं। जो आय में परिवर्तन होने पर भी परिवर्तित नहीं होता है, अर्थात् यह आय बेलोचदार होता है।
या अथवा
K=
11−MPC अथवा
K=
1MPS- . इसका अधिकतम मान अनंत तथा न्यूनतम मान एक होता है।
- जब समग्र मांग (AD), पूर्ण रोजगार स्तर पर समग्र पूर्ति (AS) से अधिक हो जाए तो उसे अत्यधिक मांग कहते हैं।
- जब समग्र मांग (AD), पूर्ण रोजगार स्तर पर समग्र पूर्ति (AS) से कम होती है, उसे अभावी माँग कहते हैं।
- स्फीति अंतराल, वास्तविक समग्र मांग और पूर्ण रोजगार संतुलन को बनाए रखने के लिए आवश्यक समग्र मांग के बीच का अंतर होता है। यह समग्र मांग के आधिक्य का माप है। यह अर्थव्यवस्था में स्फीतिकारी प्रभाव उत्पन्न करता है।
- अवस्फीति अंतराल, वास्तविक समग्र मांग और पूर्ण रोजगार संतुलन को बनाए रखने के आवश्यक समग्र मांग के बीच का अंतर होता है। यह समग्र मांग में कमी का माप है। यह अर्थव्यवस्था अवस्फीति (मंदी) उत्पन्न करता है।
अधिमांग (स्फीतिक अंतराल) तथा अभावी मांग (अवस्फीतिक अंतराल) के नियंत्रत काने की विधियाँ
-
MPC का मान शून्य तथा एक के बीच में रहता है। लेकिन यदि सम्पूर्ण अतिरिक्त आय उपभोग हो जाती है तब
ΔC=Δ-
MPS का मान शून्य तथा इकाई (एक) के बीच में रहता है। लेकिन यदि-
यदि सम्पूर्ण अतिरिक्त आय की बचत की ली जाती है, तब
ΔS=ΔY
- , अतः MPS = 1.
यदि सम्पूर्ण अतिरिक्त आय, उपभोग कर ली जाती है, तब
3-4 अंक वाले प्रश्न
प्र. 1. ऐच्छिक व अनैच्छिक बेरोजगारी के बीच अन्तर बताइए।
उत्तर- एच्छिक बेरोजगारी तथा अनैच्छिक बेरोजगारी में अंतर-
- ऐच्छिक बेरोजगारी: यह बेरोजगारी का वह रूप है जिसमें योग्य व्यक्ति मजदूरी की प्रचलित दर पर रोजगार या कार्य उपलब्ध होने क बावजूद काम करने को तैयार नहीं है।
- अनैच्छिक बेरोजगारी: यह बेरोजगारी का वह रूप है जहाँ योग्य व्यक्ति बाजार में प्रचलित मजदूरी दर पर काम करने के लिए तैयार है, लेकिन रोजगार नहीं मिलता है।
प्र. 2. एक अर्थव्यवस्था में सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) 0.75 है। अर्थव्यवस्था में निवेश व्यय में रुपये 75 करोड़ की वृद्धि हाती है। राष्ट्रीय आय में कुल वृद्धि ज्ञात कीजिए।
उत्तर- K=11−MPC=11−0.75
K = 4
K=ΔYΔI
4=ΔY75
ΔY=4×75
= 300 करोड़
प्र. 3. एक अर्थव्यवस्था सन्तुलन में है। इसका उपभोग फलन = 300 + 0.8Y है तथा निवेश रु. 700 करोड़ हो तो राष्ट्रीय आय ज्ञात कीजिए।
उत्तर- C = 300 + O.8Y
Y = C + I
Y = 300 + 0.8Y + 700
0.2Y = 1000
Y = 5000
राष्ट्रीय आय = Rs. 5000
प्र. 4. कारण सहित बताइए कि निम्न कथन सत्य हैं या असत्य?
- जब सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति शून्य है तो निवेश गुणक का मान भी शून्य होगा।
- औसत बचत प्रवृत्ति का मान कभी भी शून्य से कम नहीं होता है।
- जब MPC > MPS तथा निवेश गुणक का मान 5 से अधिक होगा।
- सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) का मान कभी भी ऋणात्मक नहीं होता है।
- जब निवेश गुणक एक होता है तो सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) शून्य होती है।
- औसत बचत प्रवृत्ति का मान 1 से अधिक नहीं हो सकता है।
उत्तर-
- असत्य, क्योंकि जब MPC = 0. K = 1/(1 - MPC) = 1/1 - 0 = 1, अतः निवेश गुणक का मान एक होता है।
- असत्य, क्योंकि जब अर्थव्यवस्था में बचतें होती हैं तो APS ऋणात्मक होती है।
- सत्य, यदि MPC, 0.8 से अधिक हो
या
असत्य, यदि MPC, 0.5 से अधिक हो लेकन 0.8 से अधिक न हो। - सत्य, क्योंकि MPS = ΔS/ΔY
- होता है ओर आय में वृद्धि होने पर बचतों में कभी भी कमी नहीं हो सकता।
- सत्य, क्योंकि K = 1/(1 - MPC) = 1/ (1 - 0) = 1.
- सत्य, क्योंकि बचत, आय से अधिक नहीं हो सकती।
प्र. 5. निवेश गुणक तथा सीमान्त उपभोग प्रवृति में सम्बन्ध की व्याख्या कीजिए।
उत्तर- K = 1/(1- MPC), प्रदर्शित करता है कि MPC तथा निवेश गुणक में सीधा सम्बन्ध होता है। यदि बढ़ी हुई आय का अधिक भाग उपभोग पर व्यय किया जाएगा, तो निवेश गुणक का मान भी अधिक होगा। अर्थात् MPC का मान जितना अधिक होगा, गुणक का मान भी उतना ही अधिक होगा और विलोमश:।
उदाहरण: MPC = 0.5, K = 2, MPC = 0.75, K = 4, MPC = 0.8, K = 5.
प्र. 6. एक अर्थव्यवस्था का बचत वक्र रु. 30 करोड़ का ऋणात्मक, अतः खण्ड बनाता है और अतिरिक्त आय का 20% भाग बचाया जाता है। बचत तथा उपभोग फलन ज्ञात कीजिए।
उत्तर- C¯¯¯¯
= 30 करोड़ रु.
MPS = 0.2
अतः बचत फलन / S = −C¯¯¯¯ + (1 - b)y
= -30 + 0.2Y
उपभोग फलन MPC = 1 - 0.2 = 0.8
C = C¯¯¯¯
+ by
C = 30 + 0.8Y
अति लघु उत्तर वाले प्रश्न (1 अंक)
प्र. 1. समष्टि अर्थशास्त्र में ‘समग्र आपूर्ति’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर- एक अर्थव्यवस्था की सभी उत्पादक इकाईयों द्वारा एक निश्चित समयावधि में सभी अंतिम वस्तुओं एवं सेवाओं के नियोजित उत्पादन के कुल मूल्य को समग्र पूर्ति कहते हैं।
प्र. 2. सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति की परिभाषा दीजिए।
उत्तर- उपभोग में परिवर्तन तथा आय में परिवर्तन को अनुपात को, सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति कहते हैं।
प्र. 3. पूर्ण रोजगार का अर्थ बताइए।
उत्तर- इससे अभिप्राय अर्थव्यवस्था की ऐसी स्थिति से है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति जो योग्य है तथा प्रचलित मौद्रिक मजदूरी की दर पर काम करने को तैयार है, को रोजगार मिल जाता है।
प्र. 4. आरक्षित नगदी निधि (CRR) अनुपात की परिभाषा दीजिए।
उत्तर- CRR (आरक्षित नगदी) निधि वाणिज्यिक बैंकों की जमाओं का वह अनुपात है जो उन्हें केन्द्रीय बैंक के पास रखना होता है।
प्र. 5. रेपो दर कफी परिभाषा दीजिए।
उत्तर- केन्द्रीय बैंक जिस ब्याज दर वाणिज्यिक बैंकों को अल्पकालीन ऋण देते हैं, उसे रेपो दर कहते हैं।
प्र. 6. सीमांत उपभोग प्रवृत्ति का मूल्य एक से अधिक क्यों नहीं हो सकता?
उत्तर- क्योंकि उपभोग में परिवर्तन, आय में परिवर्तन से अधिक नहीं हो सकता।
प्र. 7. समविच्छेद बिंदु या समता बिंदु या समस्तर बिन्दु किसे कहते हैं?
उत्तर- समविच्छेद बिन्दु वहाँ प्राप्त होता है जहाँ बचत शून्य (S = 0) होती है तथा उपभोग (C) = आय (Y).
बेहतरीन नोट्स गुरुजी।
ReplyDeleteआपका बहुत- बहुत धन्यवाद।����
Bahut upyogi notes sir
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