PM SHRI GIC Jakhnidhar: पीएम श्री राजकीय इंटर कॉलेज जाखणीधार में शीघ्र ग़ठित होगी पूर्व छात्र परिषद, छात्रों के सर्वांगीण विकास के लिए पूर्व छात्रों से भी लिया जाएगा सहयोग, कॉलेज ने जारी किया Alumni Registration Link

31 मार्च को राज्य भर के विभिन्न परीक्षा केंद्रों में संपन्न हुई अर्थशास्त्र विषय के प्रश्न पत्र ने परीक्षार्थियों को काफी उलझाए रखा। परीक्षा संपन्न होने के बाद अधिकतर परीक्षार्थियों के चेहरे जहां उदास नजर आए वही परीक्षार्थियों और अभिभावकों का कहना है कि परीक्षा प्रश्नपत्र में अधिकतर प्रश्न बच्चों को भ्रमित करने वाले थे जिन्हे हल करने में पसीना छूट गया।जानकारों के अनुसार पूर्व में कोरोना महामारी से पैदा हुए हालातों के कारण इन छात्रों की हाईस्कूल की बोर्ड परीक्षा न हो पाने और विगत दो वर्षो तक पढ़ाई प्रभावित होने के कारण के साथ ही बोर्ड प्रश्नपत्र जटिल होने के कारण बोर्ड परीक्षार्थियों को मायूस होना पड़ा है।
दूसरी ओर अर्थशास्त्र शिक्षकों के राज्यस्तरीय सोशल मीडिया समूहों में भी प्रश्नपत्र में दिए गए कुछ प्रश्नों सहित प्रश्न संख्या 12 को लेकर शिक्षकों ने प्रतिक्रिया व्यक्त करते खूब हास-परिहास किया। इस प्रश्न में केटेरीस पारिबस (Ceteris Paribus) का शाब्दिक अर्थ पूछा गया था। जिसको राज्यभर भी संचालित विद्यालयों में "अन्य बातें समान रहने पर" के रूप में पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। राज्य में उत्तराखंड बोर्ड द्वारा संचालित विद्यालयों में 99 फीसदी से अधिक विद्यालय हिंदी माध्यम में संचालित होते है। ऐसे विद्यार्थियों के लिए अंग्रेजी और लैटिन जैसे जटिल शब्दों को प्रश्न पत्र में शामिल करने की व्यवहारिकता पर शिक्षकों ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की है।
कुछ परीक्षार्थियों ने कहा कि विगत 10 वर्ष के प्रश्न पत्र हल करने के बावजूद कोई विशेष लाभ नहीं हुआ। तीन-चार प्रश्न को छोड़ कोई अन्य प्रश्न नहीं आए थे। बोर्ड ड्यूटी दे रहे कई शिक्षकों ने परीक्षा संपन्न होने के बाद बताया कि संभवत पेपर कठिन आने के कारण छात्रों ने समय से पहले प्रश्न पत्र हल करना बंद कर लिया। जानकारों के अनुसार कोरोनावायरस के बाद पैदा हुए हालातों के चलते जिस प्रकार से विगत 2 वर्षों तक शैक्षणिक माहौल पूरी तरह प्रभावित रहा उससे इस वर्ष 12वीं की परीक्षा दे रहे छात्र-छात्राओं का प्रभावित होना स्वाभाविक है। इकोनॉमिक्स के पेपर को देखते हुई यह कहा जा सकता है कि पेपर तैयार करते समय इन व्यावहारिक पहलुओं को ध्यान में शायद नहीं रखा गया। जिसकारण परीक्षा कक्षों से बाहर निकले परीक्षार्थी मायूस नजर आए।
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteअर्थ का अनर्थशास्त्र हो गया यह तो??
ReplyDeleteCopy paste siddhant chal raha he
ReplyDelete